सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019
काली कल्याणकारी!
उपाय जानने के इच्छुक सीधे इस लंबे लेख के निचले हिस्से को पढ़ें शेष जिज्ञासु इसे पूरा पढ़ें।
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ग्रहण से प्रायः नकारात्मक अर्थ ही लिया जाता है जबकि ग्रहण का अर्थ है धारण करना, किसी की छाया को स्वीकार करना।
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण दोनों ही मानव के लिए सदैव कौतूहल का विषय रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमृत मंथन के समय, अमृत चखने की इच्छा से देवताओं की पंक्ति में जा बैठने तथा वहीं पर पहचान लिए जाने से भगवान विष्णु द्वारा मारे जाने पर, अमृत पी चुकने के कारण, सिर कट जाने पर भी नहीं मरने वाला राक्षस, राहू-केतु ग्रह रूपता को प्राप्त कर गया, परन्तु यह प्रचलित कहानी है सत्य कुछ और है और ऐसा नहीं है कि प्राचीन भारतीय ज्योतिषाचार्य सिद्धान्त गणित और खगोल के ज्ञान से रहित थे।
वास्तव में सूर्य का कल्पित भ्रमणमार्ग दीर्घ वृत्ताकार क्रांतिवृत्त कहलाता है तथा चंद्रमा का भ्रमण मार्ग चंद्र विमण्डल वृत्त कहलाता है। ये दोनों वृत्त न तो समानान्तर हैं और न ही समतलवर्ती अर्थात एक तल में हैं, फिर भी अत्यन्त दूर होने के कारण दोनों वृत्त दो बिंदुओं पर एक दूसरे को काटते प्रतीत होते हैं । ये दो काट बिंदु ही चंद्रमा के पात या राहू-केतु कहलाते हैं। इसी खगोलीय जटिल ज्योतिष ज्ञान पर ऊपर कही गयी सरल कहानी बना दी गई।
जब चंद्रमा सूर्य के सामने आकर बादल की तरह सूर्य के मण्डल को ढक लेता है तब सूर्यग्रहण होता है। ऐसी स्थिति अमावस्या को ही होती है जब सूर्य व चंद्र एक राशि व समान अंशो पर होते हैं परन्तु सूर्यग्रहण के लिए अमावस्या के साथ ही यह भी आवश्यक शर्त है कि चंद्रमा का पात (राहू/केतु) सूर्य के समान अंशो पर हो तथा अमावस्या तिथि अंत के लगभग समय पर हो। यह स्थिति प्रत्येक अमावस्या पर नहीं हो सकती इसी कारण हर अमावस्या पर सूर्यग्रहण हमें देखने को नहीं मिलता है। आचार्य वराहमिहिर ने पाँचवी शताब्दी के अपने ग्रंथ वृहत संहिता में इस वैज्ञानिक मत को कहा है। हजारों वर्षों पूर्व सूर्य सिद्धान्त ग्रंथ में इसका स्पष्ट उल्लेख है और वेदों में उससे भी पूर्व चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण का उल्लेख प्राप्त होता है,अतः यह विदेशी अथवा उधार लिया हुआ ज्ञान नहीं है वरन भारत द्वारा समस्त संसार को ग्रहण कराया गया ज्ञान है।
सूर्यग्रहण के तीन प्रकार होते हैं-
पूर्ण सूर्यग्रहण - जब चंद्रमा पृथ्वी के समीप रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के मध्य आ जाये और सूर्य को पूरा ढक ले।
आंशिक सूर्यग्रहण - जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य इस प्रकार आये कि सूर्य का कुछ भाग पृथ्वी से चंद्रमा द्वारा ढका दिखाई दे।
वलयाकार सूर्यग्रहण- जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के मध्य इस प्रकार आये कि पृथ्वी से देखने पर सूर्य का मध्य भाग चंद्रमा से ढका दिखाई दे। ऐसे में सूर्य के चारों ओर का बाहरी भाग एक विशाल अँगूठी की तरह चमकता हुआ दिखाई देता है।
सूतक- ग्रहण काल के पूर्व ही वातावरण में रज और तम तत्वों की अधिकता होने लगती है और सत तत्वों में क्षीणता होने लगती है अतः इसी कारण प्रायः ग्रहण से पूर्व बारह घंटो का सूतक बताया जाता है और किसी भी प्रकार के शुभ कार्य और जीवन को प्रभावित कर सकने वाले कार्यों का निषेध बताया जाता है क्योंकि रज और तम तत्वों की अधिकता से अनेक सूक्ष्म स्तरीय दुष्प्रभाव हमारे उन कार्यों को विषाक्त कर सकते हैं इसे ही अनिष्ट शक्तियों का नाम दे दिया जाता है। यह दुष्प्रभाव चंद्र ग्रहण की अपेक्षा सूर्य ग्रहण में अधिक होता है क्योंकि सूर्य की किरणें कई तरह के दुष्प्रभावों को समाप्त करती रहतीं है जो कि ग्रहण के दौरान अवरुद्ध होने पर ऐसा नहीं कर पाती हैं। रात्रि के अंधकार की अपेक्षा ग्रहण के दौरान ही इसका अधिक प्रभाव क्यों होता है तो इसका कारण है दिन के समय सूर्य की किरणों का अवरुद्ध होना प्रकृति के सामान्य चक्र में बाधा पहुँचाता है और आप समझ सकते हैं कि किसी भी सामान्य चक्र में आई आकस्मिक बाधा अधिक कष्ट पहुँचाती है।
इसी कारण इस समय सत तत्व की मात्रा बढ़ाने को जप,तप, साधना, दान आदि जैसे कर्म करने को कहा जाता है।
ग्रहण के ठीक बाद सूतक समाप्त हो जाता है इसका कारण है कि ग्रहण उपरांत सूर्य की किरणें अधिक प्रभावी रूप से उन सभी विषैले तत्वों का नाश करने लगतीं हैं जैसे कि अगर आप अपनी कार की बंद खिड़की को जरा सा खोले तो कार के भीतर आने वाली वायु अधिक वेग से आती दिखती है। वास्तव में ग्रहण प्रकृति की स्वच्छता की अनूठी प्रक्रिया है। यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि ऊपर कहे गए दुष्प्रभाव/प्रभाव उस समय के अनुसार गणना किये गए थे जब वातावरण उतना मलिन नहीं था अब तो हम प्रतिदिन ध्वनि, वायु,जल, खाद्य पदार्थों के प्रदूषण और मोटर, मशीनों, मोबाइल आदि यंत्रों के विकिरण से ही इतना अधिक प्रभावित होते रहते हैं कि यह दुष्प्रभाव तुरन्त अपना असर देते नहीं दिखते।
इसी कारण इस समय सत तत्व की मात्रा बढ़ाने को जप,तप, साधना, दान आदि जैसे कर्म करने को कहा जाता है।
ग्रहण के ठीक बाद सूतक समाप्त हो जाता है इसका कारण है कि ग्रहण उपरांत सूर्य की किरणें अधिक प्रभावी रूप से उन सभी विषैले तत्वों का नाश करने लगतीं हैं जैसे कि अगर आप अपनी कार की बंद खिड़की को जरा सा खोले तो कार के भीतर आने वाली वायु अधिक वेग से आती दिखती है। वास्तव में ग्रहण प्रकृति की स्वच्छता की अनूठी प्रक्रिया है। यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि ऊपर कहे गए दुष्प्रभाव/प्रभाव उस समय के अनुसार गणना किये गए थे जब वातावरण उतना मलिन नहीं था अब तो हम प्रतिदिन ध्वनि, वायु,जल, खाद्य पदार्थों के प्रदूषण और मोटर, मशीनों, मोबाइल आदि यंत्रों के विकिरण से ही इतना अधिक प्रभावित होते रहते हैं कि यह दुष्प्रभाव तुरन्त अपना असर देते नहीं दिखते।
आचार्य वराहमिहिर ने सूर्यग्रहण के प्रभाव-दुष्प्रभाव के लिए एक अत्यंत सरल गणितीय विधि बताई है, इसमें जिस स्थान पर ग्रहण दिखाई दे वहाँ सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के समय (दिनमान) को सात से भाग दे दें और फिर देखें कि समय के इन सात खंडों के मध्य किस खंड में ग्रहण का आरम्भ और किस खंड में ग्रहण का मोक्ष अथवा ग्रहण पूर्ण होता है उसके अनुसार उन्होंने अलग अलग खंडों के अनेक फल कहे हैं। यहाँ अधिक विस्तार देने से लेख अत्यधिक लंबा हो जाएगा।
परन्तु ऊपर दी गई जानकारी अब आपके व्यवहारिक रूप से काम आएगी
इसलिये कल होने वाले सूर्यग्रहण के बारे में कहता हूं- (यह गणना लखनऊ के लिए है अन्य स्थानों पर इसी समय के कुछ आगे पीछे समय रहेगा)
परन्तु ऊपर दी गई जानकारी अब आपके व्यवहारिक रूप से काम आएगी
इसलिये कल होने वाले सूर्यग्रहण के बारे में कहता हूं- (यह गणना लखनऊ के लिए है अन्य स्थानों पर इसी समय के कुछ आगे पीछे समय रहेगा)
कल 26 दिसम्बर 2019 को सूर्यग्रहण प्रातः 8 बजकर 20 मिनट पर आरम्भ होगा और पूर्वाह्न 11 बजकर 7 मिनट पर पूर्ण होगा।
आंशिक सूर्यग्रहण की पूर्ण अवधि लगभग 2 घंटे 47 मिनट और 20 सेकंड की होगी।
आंशिक सूर्यग्रहण की पूर्ण अवधि लगभग 2 घंटे 47 मिनट और 20 सेकंड की होगी।
सूतककाल 25 दिसम्बर 2019 रात्रि 8 बजकर 20 मिनट से आरम्भ हो जाएगा (मतांतर से कुछ विद्वान सूर्यास्त के बाद से सूतक का आरम्भ कहते हैं) और 26 दिसम्बर 2019 को पूर्वाह्न 11 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगा।
कल होने वाला सूर्यग्रहण वलयाकार सूर्यग्रहण होगा इसका अधिकतम मैग्नीट्यूड अर्थात परिमाण 0.93- 0.97 होगा जिसका अर्थ है चंद्रमा सूर्य के अधिकतम 93-97 प्रतिशत हिस्से को ही ढकेगा। लखनऊ के लिए यह प्रतिशत 52- 55 होगा। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों जैसे ऊटी शिवगंगा मंगलुरू आदि में वलयाकार सूर्यग्रहण तथा लखनऊ, दिल्ली कलकत्ता मुंबई आदि शेष भारत के शहरों में आंशिक सूर्यग्रहण दिखेगा।
कल सूर्यग्रहण की यह घटना दिनमान के सात भागों में से प्रथम भाग में आरम्भ होगी और तृतीय भाग में सम्पन्न होगी अतः जहाँ जहाँ यह ग्रहण दिखाई देगा वहाँ वहाँ के विद्वानों, ब्राह्मणों, उच्च वर्ग, बड़ी राजनैतिक पार्टियों तथा उनके शिखर पुरुष (नेता), गुणीजनों, धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य करने वालों, अग्नि और यंत्रों से काम करने वालों (स्वर्णकार, लोहार, भोजनालय चलाने वाले, मशीन कम्प्यूटर चलाने वाले) आदि व्यक्तियों को कष्ट व हानि होगी तथा कढ़ाई, दस्तकारी, निचले स्तर पर कार्य करने वाले सभी व्यक्ति, क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टियां तथा उनके नेता, हीन व्यक्ति, दिव्यांग, निम्न वर्ग, व निम्न स्तर के मंत्रियों, अधिकारियों, कर्मचारियों आदि को लाभ होगा।
कल होने वाला यह सूर्यग्रहण धनुराशि में हो रहा है इसके लिए शास्त्र कहता है कि यदि सूर्यग्रहण धनुराशि में हो तो देश के प्रधान पुरुषों, उच्च मंत्रियों, सेना व अस्त्र शस्त्र चलाने वालों और उनके साधनों, वैद्य-चिकित्सकों, बड़े व्यापारियों, तेज तर्रार छवि वालों और मिथिला और गंगाक्षेत्र के निवासियों को कष्ट होता है।
ऊपर कहे गए हानि लाभ पूर्ण ग्रहण के लिए कहे गए हैं अतः आंशिक ग्रहण के लिए अनुपातिक प्रभाव समझें।
वलयाकार ग्रहण दिखने वाले प्रदेशों के नागरिकों का सामान्यतः कुशल होता है हाँ वहाँ पेट व आंतों से जुड़े संक्रामक रोगों के फैलने की संभावना अधिक हो जाती है।
ऊपर कहे गए हानि लाभ पूर्ण ग्रहण के लिए कहे गए हैं अतः आंशिक ग्रहण के लिए अनुपातिक प्रभाव समझें।
वलयाकार ग्रहण दिखने वाले प्रदेशों के नागरिकों का सामान्यतः कुशल होता है हाँ वहाँ पेट व आंतों से जुड़े संक्रामक रोगों के फैलने की संभावना अधिक हो जाती है।
सामान्य उपाय व निर्देश-
क्या न करें- जैसा कि ऊपर बताया गया था कि इस दौरान रज और तम तत्वों की प्रबलता अधिक हो जाती है अतः ऐसे कोई भी कर्म न करें जिससे इन तत्वों की प्रबलता अधिक हो, इस दौरान सामान्य तौर पर भोजन, शयन, मैथुन, शौच तथा शुभ कार्य का आरम्भ आदि न करें। सूक्ष्म तत्वों के सक्रिय होने के कारण गर्भस्थ शिशु को संक्रमण होने की संभावना रहती है अतः गर्भवती महिलाओं को इस दौरान खुले में विचरण नहीं करना चाहिए। लेकिन उन्हें अपने भोजन,दवाओं आदि का सेवन और शयन समय से करना चाहिए। श्वांस रोगी भी सावधानी बरतें।
क्या करें- सूतक के दौरान अपने जीवन के नित्य कर्म सीमित रखें और अधिक कर्मकांड में न उलझें बस जितना हो सके स्वयं को मानसिक रूप से ईश्वर के समीप रखें। अपने इष्ट के मंत्र का जप करें। गुरु के दिये मंत्र को सिद्ध करें। भोजन आदि सूतक पूर्व ही पका लें तथा ग्रहण कर लें यदि ऐसा संभव न हो तो खाद्य पदार्थों में तुलसी के पत्ते डालकर रखें। परन्तु यह ध्यान रखें कि तुलसी के पत्ते सूतक आरम्भ से पूर्व ही पौधे से प्राप्त कर लें सूतक के दौरान तुलसी के पत्ते न तोड़ें। भोजन सुपाच्य लें क्योंकि ग्रहणकाल में खाद्य पदार्थ और पाचन क्रिया दोनो ही प्रभावित होते हैं हालाँकि आज की अधिकांश आबादी पाचन संबंधी परेशानियों से ग्रस्त है तो इसका भी असर सामान्य रूप से दिखना लगभग असंभव दिखता है परंतु जितना संभव हो सके उतनी सतर्कता अवश्य बरतें।
विशेष उपाय- सभी राशि और लग्न वाले आज सूतक काल से पहले लाये हुये 400 ग्राम खाण्ड या गुड़ में सूतक काल से पहले तोड़े गये तुलसी के कुछ पत्तों को मिलाकर एक मिट्टी की छोटी किंतु साफ मटकी में भरकर (यदि गेरू से मटकी बाहर से रंग सकें तो और उत्तम) अपने घर के भीतर उत्तर दिशा के किसी स्थान पर सूतक आरम्भ होने से पूर्व किसी भी समय पर रख दें और ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान आदि करने के बाद यथा सामर्थ्य कुछ दक्षिणा के साथ उस मटकी को किसी देव स्थान पर अवश्य ही दे आएं। माँ ने चाहा तो आपके जीवन की कई समस्याओं का हल और आपकी मनोकामनाओं की प्राप्ति का मार्ग आपको आगामी पूर्णिमा तक ही प्राप्त हो जाएगा।
शेष काली इच्छा!
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