Monday, November 25, 2019

आज मार्गशीष अमावस्या 2019 पर करें यह उपाय हों ऋण-मुक्त,पाएं समृद्धि,संतान व धन धान्य

काली कल्याणकारी!

आज मार्गशीष अमावस्या पर करें यह उपाय
हों ऋण-मुक्त,पाएं समृद्धि,संतान व धन धान्य

1.जिनका कर्ज़ न उतरता हो वे आज सुबह स्नान आदि के उपरांत गजेंद्रमोक्ष का पाठ करें और शाम को सुन्दरकाण्ड का पाठ करें, भौम अमावस्या होने के कारण आज कर्ज़ मुक्ति का विशेष दिन है।

2.संतान की इच्छा रखने वाले पति-पत्नी सुबह और शाम संतान गोपाल और विष्णुसहस्त्रनाम दोनों का पाठ करें।

3. धन की कमी और दरिद्रता से जूझ रहे व्यक्ति आज सुबह विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें और शाम को माँ लक्ष्मी की पूजा करें।

4. जिनके हर काम में बाधा पड़ जाती हो, बना बनाया काम आखिरी वक्त में बिगड़ जाता हो, किसी नए काम में विघ्न आता हो और जीवन में बहुत संघर्ष के उपरांत भी सफलता न मिलती हो या बहुत देर से मिलती हो ऐसे सभी व्यक्तियों को सुबह शिव परिवार की पूजा और दोपहर 12 बजे जल में थोड़े से तिल डालकर पितरों को तर्पण देना चाहिए तथा शाम को गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

5. आज के दिन तुलसी के पौधे की थोड़ी सी मिट्टी और तुलसी की कुछ पत्तियां जल में मिलाकर स्नान करना चाहिए, और उपवास रखना चाहिए। ऊपर बताए गए उपायों में सुबह का मतलब सूर्योदय के एक घंटे के भीतर और शाम का मतलब सूर्यास्त के एक घंटे के अंदर के समय से लें।

शेष काली इच्छा!
#ज्योतिषडॉक्टर #आचार्यतुषारापात
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Friday, November 8, 2019

देवउठनी एकादशी विशेष वैज्ञानिक सूत्र

काली कल्याणकारी!
जीवन में आया प्रतिकूल समय हमें उतना कष्ट नहीं पहुँचाता जितना कि विपरीत समय आने की आशंका कष्ट पहुँचाती रहती है। विपदा में पड़ जाने का भय हमें अधिक भयभीत करता है जबकि विपदा में पड़ने पर हम क्षण भर को तो भयभीत होते हैं परंतु शीघ्र ही हम उस विपदा के प्रति संघर्ष आरम्भ कर देते हैं यह एक स्वचालित प्राकृतिक प्रक्रिया है कई बार हमें स्वयं भी पता नहीं होता कि हम ऐसा कुछ कर रहे हैं क्योंकि हमारे मस्तिष्क का एक हिस्सा अभी भी एक आशंका से भरा होता है कि क्या हम इस विपदा से पार पा पायेंगें, इस आशंका के कारण ही हम यह नहीं देख पाते कि हमारे  मस्तिष्क का एक बड़ा भाग और हमारा ये शरीर पूरी दृढ़ता से उस विपदा से निकलने के प्रयास में लगा है। जिस दिवस तुम्हारे भीतर यह आशंका सुप्त हो जाएगी और तुम्हें अपने मस्तिष्क और शरीर की प्रकृति प्रदत्त इस दृढ़ता और जिजीविषा का भान हो जायेगा तुम्हारे भीतर का नारायण जाग जाएगा और तुम स्वयं को ग्यारह गुना अधिक शक्तिशाली पाओगे। कहते भी हैं कि एक और एक ग्यारह होते हैं, तो तुम नारायण से एक हो जाओ, अपने भीतर के नारायण को जगाओ,आज दिन है नारायण के जागने का उसे किसी मंदिर में जगाने से पहले इस पंचमहली शरीर में, अपने मन के अंदर जगाओ और स्वयं मंदिर हो जाओ, मंदिर छोड़ के नारायण कहाँ जायेंगें,तुममें ही रह जायेंगें।

#हरिप्रबोधिनी_एकादशी
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ज्योतिषी से पूछे जाने वाले प्रश्न का महत्त्व

प्रश्न का महत्त्व क्या है यह जानने के लिए यह कथा सुनो-
एक जुआरी दोपहर में एक महात्मा के पास गया और उनसे कहने लगा "महाराज जी..मैं आज सुबह अपने दोस्तों के साथ पत्ते खेल रहा था...मैं जीत तो नहीं रहा था..पर ज़्यादा हारा भी नहीं था..जुआ बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन थोड़ी देर के बाद ही शराब पीने का दूसरा दौर चला और मेरे साथ पत्ते खेलने वालों ने मुझे बहुत मारा-पीटा और सारे पैसे छीन लिए.. मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे आगे कभी भी मेरे साथ ऐसा कुछ न हो"

"भाई.. अगली बार जब जुआ खेलने जाना तो अपने साथ अपने दो चार हट्टे-कट्टे दोस्त ले जाना" महात्मा ने उसे यह उत्तर दिया जिसे सुनकर जुआरी खुशी खुशी चला गया, परन्तु महात्मा की यह बात सुनकर उनका शिष्य थोड़ा दुखी होकर बोला "लेकिन गुरुदेव.. आप उससे यह भी तो कह सकते थे कि जुआ खेलना बुरी बात है..अगर वो जुआ खेलने नहीं जाता तो न शराब पीता..और न ही मारा-पीटा जाता।

महात्मा मुस्कुराए और बोले "तुम्हें क्या लगता है वह यह बात नहीं जानता कि जुआ खेलना और शराब पीना बुरी बात है.. वो बस ये जानने आया था कि कैसे वो अगली बार पीटे जाने से बचे और उसके पैसे न छीने जाएं.. उसे उसके मन का उत्तर चाहिए था न कि मेरा ज्ञान और अपना उत्थान।"

#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर

तुम्हारा चेहरा राजदरबार है

काली कल्याणकारी!
कान,आँख और नाक, मस्तिष्क के सर्वश्रेष्ठ मंत्री हैं,इनके परामर्शानुसार जिह्वा की तुला का संतुलन करने वाले का मुख राजदरबार सा सुशोभित होता है। 

#ज्योतिषडॉक्टर #आचार्यतुषारापात

निःशुल्क ज्योतिष परामर्श ज्योतिष डॉक्टर आचार्य तुषारापात द्वारा

निःशुल्क परामर्श को लेकर कुछ लोगों को बड़ी चिंता सता रही है कुछ को शक है कि यह पैसे ऐंठने का कोई दाँव है और कुछ सोच रहे हैं कि कहीं न कहीं इसमें कुछ तो रहस्य है तो ऐसे सभी 'जिज्ञासुओं' हेतु यह कहानी सुनाता हूँ जो बचपन में आप सबने अवश्य सुनी होगी-----

"नारायण..नारायण!" देवऋषि नारद अपने चिरपरिचित अंदाज़ में नारायण नाम का जप करते हुए ब्रह्मलोक पहुँचते हैं उन्हें आया देख ब्रह्मा जी मुस्कुराए और बोले "आओ नारद आओ...आज ब्रह्मलोक में भ्रमण का उद्देश्य कहो"

"जगतपिता..आप अंतरयामी हैं..सब आपकी ही विधि है विधाता.. कुछ दिवसों से मेरे मन में एक प्रश्न ने घर बना लिया है उसी प्रश्न के उत्तर हेतु आपके समक्ष उपस्थित हूँ" नारद ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा

ब्रह्मा जी बोले "निसंकोच पूछो पुत्र" देवऋषि नारद ने उनके सामने अपना प्रश्न रखा "देवता और दैत्य सभी आपकी ही रचना हैं..मुझमें यह जिज्ञासा भी आपकी ही किसी माया के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है.. हे पिता! आपके इन दोनों पुत्रों में श्रेष्ठ कौन है.. एक ओर देवता यदि श्रेष्ठ भक्त और सदाचारी हैं तो दूसरी ओर दैत्य शक्ति और हठयोग में श्रेष्ठ हैं परंतु आपके अनुसार दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं?"

यह तो बड़ा कठिन प्रश्न प्रस्तुत किया तुमने पुत्र.. परन्तु इसका उत्तर तो देना ही होगा.. ऐसा करो पुत्र..तुम देवलोक और दैत्यलोक में सबको कल दोपहर के भोजन का मेरा निमंत्रण दे आओ.. कल जब समस्त देव-दानव यहाँ ब्रह्मलोक में भोजन हेतु उपस्थित होंगे तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाएगा" ब्रह्मा जी नारद से यह कहकर ध्यानस्थ हो गए

नारद शीघ्रता से देवलोक और दानवलोक में जगतपिता का निमंत्रण देने निकल जाते हैं और अगले दिन ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के आदेश पर उपस्थित सभी देव-दैत्यों को देख बड़े प्रसन्न होते हैं कि चलो अब मेरे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा कि देवताओं और दैत्यों में कौन श्रेष्ठ हैं।

ब्रह्माजी के आदेश पर एक तरफ दैत्यों को आमने सामने दो पंक्तियों में बिठाया गया और दूसरी ओर इसी तरह देवताओं को बिठा के सुन्दर स्वादिष्ट और सिर्फ ब्रह्मलोक में मिलने वाले अनोखे पकवानों से सजे थाल हर किसी के सामने रख दिये गए, सब भोजन आरंभ करने जा ही रहे थे कि तभी ब्रह्माजी ने कहा "रुको तुम सबको भोजन करना तो है परंतु एक विशेष परिस्थिति में" ऐसा कहकर ब्रह्माजी ने एक एक हाथ लंबी लकड़ियों के कई सारे टुकड़े मंगवाए और सभी देवताओं और दानवों के दोनों हाथों में उन लकड़ियों के टुकड़े इस प्रकार बँधवा दिए जिससे कि कोई भी अपने हाथों की कोहनियाँ न मोड़ पाए, ऐसा करवाने के बाद उन्होंने सबसे कहा "पुत्रों.. अब आप सब भोजन का आनंद लें"

ब्रह्माजी के इस अनोखे आदेश के कारण दैत्यों और देवों को भोजन करना असम्भव हो गया था, दैत्यों ने अनेक प्रयत्न किए पर वो किसी भी तरह किसी भी पकवान का एक छोटा सा टुकड़ा भी अपने मुख तक न ले जा पाए, अंत में थक-हारकर दैत्य कुपित होकर बैठ गए।

देवताओं ने भी अनेक विधि संघर्ष किया पर शीघ्र ही वे समझ गए कि इस तरह बिना हाथ मोड़े स्वयं को भोजन करा पाना असंभव है अतः उन्होंने एक युक्ति निकाली और अपने सामने बैठे देवों के समीप जाकर उनके भोजन-थाल से उन्हें पकवान खिलाने लगे और ऐसा ही उनके सामने वाले देवों ने किया और इस प्रकार सभी देवताओं ने भोजन का आनंद उठाया और दैत्य उन्हें भोजन करते देखते रह गये।

ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए नारद से पूछा " क्यों पुत्र..तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हुआ?"

देवऋषि नारद भी खिलखिला उठे "पिता श्री.. आपकी महिमा निराली है..मुझे पता चल गया कि देवता ही श्रेष्ठ हैं.."

तब ब्रह्माजी गंभीर स्वर में बोले " नारद! देवता इसलिये श्रेष्ठ नहीं है कि उन्होंने यह युक्ति निकाल ली.. परन्तु दैत्य इसलिये अधम हैं क्योंकि दैत्यों ने..देवताओं के एक दूसरे को भोजन कराने को देखकर भी अपने अहंकार के कारण दूसरे दैत्यों को भोजन नहीं कराया जो अच्छा काम होते देख भी उसका अनुसरण न करे.. वह ही दैत्य है"

नारद ने मुस्कुराते हुये ब्रह्माजी को नमन किया और नारायण नारायण कहते हुए वे ब्रह्मलोक से विदा हो गए।

तो बंधुओं आशा करता हूँ नारद की तरह 'जिज्ञासुओं' की जिज्ञासा भी विदा हो गई होगी मैं ज्योतिष विद्या के अपने अल्प ज्ञान से आप सबके प्रारब्ध काट के अपना प्रारब्ध काटना चाहता हूँ और यही मेरे निःशुल्क परामर्श देने का रहस्य है। समय अधिक नहीं है बाकी काली की इच्छा।

काली कल्याणकारी!🙏
#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर

सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019 सम्पूर्ण जानकारी

सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019 काली कल्याणकारी! उपाय जानने के इच्छुक सीधे इस लंबे लेख के निचले हिस्से को पढ़ें शेष जिज्ञासु इसे पूरा पढ़ें। ...