काली कल्याणकारी!
जीवन में आया प्रतिकूल समय हमें उतना कष्ट नहीं पहुँचाता जितना कि विपरीत समय आने की आशंका कष्ट पहुँचाती रहती है। विपदा में पड़ जाने का भय हमें अधिक भयभीत करता है जबकि विपदा में पड़ने पर हम क्षण भर को तो भयभीत होते हैं परंतु शीघ्र ही हम उस विपदा के प्रति संघर्ष आरम्भ कर देते हैं यह एक स्वचालित प्राकृतिक प्रक्रिया है कई बार हमें स्वयं भी पता नहीं होता कि हम ऐसा कुछ कर रहे हैं क्योंकि हमारे मस्तिष्क का एक हिस्सा अभी भी एक आशंका से भरा होता है कि क्या हम इस विपदा से पार पा पायेंगें, इस आशंका के कारण ही हम यह नहीं देख पाते कि हमारे मस्तिष्क का एक बड़ा भाग और हमारा ये शरीर पूरी दृढ़ता से उस विपदा से निकलने के प्रयास में लगा है। जिस दिवस तुम्हारे भीतर यह आशंका सुप्त हो जाएगी और तुम्हें अपने मस्तिष्क और शरीर की प्रकृति प्रदत्त इस दृढ़ता और जिजीविषा का भान हो जायेगा तुम्हारे भीतर का नारायण जाग जाएगा और तुम स्वयं को ग्यारह गुना अधिक शक्तिशाली पाओगे। कहते भी हैं कि एक और एक ग्यारह होते हैं, तो तुम नारायण से एक हो जाओ, अपने भीतर के नारायण को जगाओ,आज दिन है नारायण के जागने का उसे किसी मंदिर में जगाने से पहले इस पंचमहली शरीर में, अपने मन के अंदर जगाओ और स्वयं मंदिर हो जाओ, मंदिर छोड़ के नारायण कहाँ जायेंगें,तुममें ही रह जायेंगें।
#हरिप्रबोधिनी_एकादशी
#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर
जीवन में आया प्रतिकूल समय हमें उतना कष्ट नहीं पहुँचाता जितना कि विपरीत समय आने की आशंका कष्ट पहुँचाती रहती है। विपदा में पड़ जाने का भय हमें अधिक भयभीत करता है जबकि विपदा में पड़ने पर हम क्षण भर को तो भयभीत होते हैं परंतु शीघ्र ही हम उस विपदा के प्रति संघर्ष आरम्भ कर देते हैं यह एक स्वचालित प्राकृतिक प्रक्रिया है कई बार हमें स्वयं भी पता नहीं होता कि हम ऐसा कुछ कर रहे हैं क्योंकि हमारे मस्तिष्क का एक हिस्सा अभी भी एक आशंका से भरा होता है कि क्या हम इस विपदा से पार पा पायेंगें, इस आशंका के कारण ही हम यह नहीं देख पाते कि हमारे मस्तिष्क का एक बड़ा भाग और हमारा ये शरीर पूरी दृढ़ता से उस विपदा से निकलने के प्रयास में लगा है। जिस दिवस तुम्हारे भीतर यह आशंका सुप्त हो जाएगी और तुम्हें अपने मस्तिष्क और शरीर की प्रकृति प्रदत्त इस दृढ़ता और जिजीविषा का भान हो जायेगा तुम्हारे भीतर का नारायण जाग जाएगा और तुम स्वयं को ग्यारह गुना अधिक शक्तिशाली पाओगे। कहते भी हैं कि एक और एक ग्यारह होते हैं, तो तुम नारायण से एक हो जाओ, अपने भीतर के नारायण को जगाओ,आज दिन है नारायण के जागने का उसे किसी मंदिर में जगाने से पहले इस पंचमहली शरीर में, अपने मन के अंदर जगाओ और स्वयं मंदिर हो जाओ, मंदिर छोड़ के नारायण कहाँ जायेंगें,तुममें ही रह जायेंगें।
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