निःशुल्क परामर्श को लेकर कुछ लोगों को बड़ी चिंता सता रही है कुछ को शक है कि यह पैसे ऐंठने का कोई दाँव है और कुछ सोच रहे हैं कि कहीं न कहीं इसमें कुछ तो रहस्य है तो ऐसे सभी 'जिज्ञासुओं' हेतु यह कहानी सुनाता हूँ जो बचपन में आप सबने अवश्य सुनी होगी-----
"नारायण..नारायण!" देवऋषि नारद अपने चिरपरिचित अंदाज़ में नारायण नाम का जप करते हुए ब्रह्मलोक पहुँचते हैं उन्हें आया देख ब्रह्मा जी मुस्कुराए और बोले "आओ नारद आओ...आज ब्रह्मलोक में भ्रमण का उद्देश्य कहो"
"जगतपिता..आप अंतरयामी हैं..सब आपकी ही विधि है विधाता.. कुछ दिवसों से मेरे मन में एक प्रश्न ने घर बना लिया है उसी प्रश्न के उत्तर हेतु आपके समक्ष उपस्थित हूँ" नारद ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा
ब्रह्मा जी बोले "निसंकोच पूछो पुत्र" देवऋषि नारद ने उनके सामने अपना प्रश्न रखा "देवता और दैत्य सभी आपकी ही रचना हैं..मुझमें यह जिज्ञासा भी आपकी ही किसी माया के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है.. हे पिता! आपके इन दोनों पुत्रों में श्रेष्ठ कौन है.. एक ओर देवता यदि श्रेष्ठ भक्त और सदाचारी हैं तो दूसरी ओर दैत्य शक्ति और हठयोग में श्रेष्ठ हैं परंतु आपके अनुसार दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं?"
यह तो बड़ा कठिन प्रश्न प्रस्तुत किया तुमने पुत्र.. परन्तु इसका उत्तर तो देना ही होगा.. ऐसा करो पुत्र..तुम देवलोक और दैत्यलोक में सबको कल दोपहर के भोजन का मेरा निमंत्रण दे आओ.. कल जब समस्त देव-दानव यहाँ ब्रह्मलोक में भोजन हेतु उपस्थित होंगे तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाएगा" ब्रह्मा जी नारद से यह कहकर ध्यानस्थ हो गए
नारद शीघ्रता से देवलोक और दानवलोक में जगतपिता का निमंत्रण देने निकल जाते हैं और अगले दिन ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के आदेश पर उपस्थित सभी देव-दैत्यों को देख बड़े प्रसन्न होते हैं कि चलो अब मेरे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा कि देवताओं और दैत्यों में कौन श्रेष्ठ हैं।
ब्रह्माजी के आदेश पर एक तरफ दैत्यों को आमने सामने दो पंक्तियों में बिठाया गया और दूसरी ओर इसी तरह देवताओं को बिठा के सुन्दर स्वादिष्ट और सिर्फ ब्रह्मलोक में मिलने वाले अनोखे पकवानों से सजे थाल हर किसी के सामने रख दिये गए, सब भोजन आरंभ करने जा ही रहे थे कि तभी ब्रह्माजी ने कहा "रुको तुम सबको भोजन करना तो है परंतु एक विशेष परिस्थिति में" ऐसा कहकर ब्रह्माजी ने एक एक हाथ लंबी लकड़ियों के कई सारे टुकड़े मंगवाए और सभी देवताओं और दानवों के दोनों हाथों में उन लकड़ियों के टुकड़े इस प्रकार बँधवा दिए जिससे कि कोई भी अपने हाथों की कोहनियाँ न मोड़ पाए, ऐसा करवाने के बाद उन्होंने सबसे कहा "पुत्रों.. अब आप सब भोजन का आनंद लें"
ब्रह्माजी के इस अनोखे आदेश के कारण दैत्यों और देवों को भोजन करना असम्भव हो गया था, दैत्यों ने अनेक प्रयत्न किए पर वो किसी भी तरह किसी भी पकवान का एक छोटा सा टुकड़ा भी अपने मुख तक न ले जा पाए, अंत में थक-हारकर दैत्य कुपित होकर बैठ गए।
देवताओं ने भी अनेक विधि संघर्ष किया पर शीघ्र ही वे समझ गए कि इस तरह बिना हाथ मोड़े स्वयं को भोजन करा पाना असंभव है अतः उन्होंने एक युक्ति निकाली और अपने सामने बैठे देवों के समीप जाकर उनके भोजन-थाल से उन्हें पकवान खिलाने लगे और ऐसा ही उनके सामने वाले देवों ने किया और इस प्रकार सभी देवताओं ने भोजन का आनंद उठाया और दैत्य उन्हें भोजन करते देखते रह गये।
ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए नारद से पूछा " क्यों पुत्र..तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हुआ?"
देवऋषि नारद भी खिलखिला उठे "पिता श्री.. आपकी महिमा निराली है..मुझे पता चल गया कि देवता ही श्रेष्ठ हैं.."
तब ब्रह्माजी गंभीर स्वर में बोले " नारद! देवता इसलिये श्रेष्ठ नहीं है कि उन्होंने यह युक्ति निकाल ली.. परन्तु दैत्य इसलिये अधम हैं क्योंकि दैत्यों ने..देवताओं के एक दूसरे को भोजन कराने को देखकर भी अपने अहंकार के कारण दूसरे दैत्यों को भोजन नहीं कराया जो अच्छा काम होते देख भी उसका अनुसरण न करे.. वह ही दैत्य है"
नारद ने मुस्कुराते हुये ब्रह्माजी को नमन किया और नारायण नारायण कहते हुए वे ब्रह्मलोक से विदा हो गए।
तो बंधुओं आशा करता हूँ नारद की तरह 'जिज्ञासुओं' की जिज्ञासा भी विदा हो गई होगी मैं ज्योतिष विद्या के अपने अल्प ज्ञान से आप सबके प्रारब्ध काट के अपना प्रारब्ध काटना चाहता हूँ और यही मेरे निःशुल्क परामर्श देने का रहस्य है। समय अधिक नहीं है बाकी काली की इच्छा।
काली कल्याणकारी!🙏
#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर
"नारायण..नारायण!" देवऋषि नारद अपने चिरपरिचित अंदाज़ में नारायण नाम का जप करते हुए ब्रह्मलोक पहुँचते हैं उन्हें आया देख ब्रह्मा जी मुस्कुराए और बोले "आओ नारद आओ...आज ब्रह्मलोक में भ्रमण का उद्देश्य कहो"
"जगतपिता..आप अंतरयामी हैं..सब आपकी ही विधि है विधाता.. कुछ दिवसों से मेरे मन में एक प्रश्न ने घर बना लिया है उसी प्रश्न के उत्तर हेतु आपके समक्ष उपस्थित हूँ" नारद ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा
ब्रह्मा जी बोले "निसंकोच पूछो पुत्र" देवऋषि नारद ने उनके सामने अपना प्रश्न रखा "देवता और दैत्य सभी आपकी ही रचना हैं..मुझमें यह जिज्ञासा भी आपकी ही किसी माया के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है.. हे पिता! आपके इन दोनों पुत्रों में श्रेष्ठ कौन है.. एक ओर देवता यदि श्रेष्ठ भक्त और सदाचारी हैं तो दूसरी ओर दैत्य शक्ति और हठयोग में श्रेष्ठ हैं परंतु आपके अनुसार दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं?"
यह तो बड़ा कठिन प्रश्न प्रस्तुत किया तुमने पुत्र.. परन्तु इसका उत्तर तो देना ही होगा.. ऐसा करो पुत्र..तुम देवलोक और दैत्यलोक में सबको कल दोपहर के भोजन का मेरा निमंत्रण दे आओ.. कल जब समस्त देव-दानव यहाँ ब्रह्मलोक में भोजन हेतु उपस्थित होंगे तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाएगा" ब्रह्मा जी नारद से यह कहकर ध्यानस्थ हो गए
नारद शीघ्रता से देवलोक और दानवलोक में जगतपिता का निमंत्रण देने निकल जाते हैं और अगले दिन ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के आदेश पर उपस्थित सभी देव-दैत्यों को देख बड़े प्रसन्न होते हैं कि चलो अब मेरे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा कि देवताओं और दैत्यों में कौन श्रेष्ठ हैं।
ब्रह्माजी के आदेश पर एक तरफ दैत्यों को आमने सामने दो पंक्तियों में बिठाया गया और दूसरी ओर इसी तरह देवताओं को बिठा के सुन्दर स्वादिष्ट और सिर्फ ब्रह्मलोक में मिलने वाले अनोखे पकवानों से सजे थाल हर किसी के सामने रख दिये गए, सब भोजन आरंभ करने जा ही रहे थे कि तभी ब्रह्माजी ने कहा "रुको तुम सबको भोजन करना तो है परंतु एक विशेष परिस्थिति में" ऐसा कहकर ब्रह्माजी ने एक एक हाथ लंबी लकड़ियों के कई सारे टुकड़े मंगवाए और सभी देवताओं और दानवों के दोनों हाथों में उन लकड़ियों के टुकड़े इस प्रकार बँधवा दिए जिससे कि कोई भी अपने हाथों की कोहनियाँ न मोड़ पाए, ऐसा करवाने के बाद उन्होंने सबसे कहा "पुत्रों.. अब आप सब भोजन का आनंद लें"
ब्रह्माजी के इस अनोखे आदेश के कारण दैत्यों और देवों को भोजन करना असम्भव हो गया था, दैत्यों ने अनेक प्रयत्न किए पर वो किसी भी तरह किसी भी पकवान का एक छोटा सा टुकड़ा भी अपने मुख तक न ले जा पाए, अंत में थक-हारकर दैत्य कुपित होकर बैठ गए।
देवताओं ने भी अनेक विधि संघर्ष किया पर शीघ्र ही वे समझ गए कि इस तरह बिना हाथ मोड़े स्वयं को भोजन करा पाना असंभव है अतः उन्होंने एक युक्ति निकाली और अपने सामने बैठे देवों के समीप जाकर उनके भोजन-थाल से उन्हें पकवान खिलाने लगे और ऐसा ही उनके सामने वाले देवों ने किया और इस प्रकार सभी देवताओं ने भोजन का आनंद उठाया और दैत्य उन्हें भोजन करते देखते रह गये।
ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए नारद से पूछा " क्यों पुत्र..तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हुआ?"
देवऋषि नारद भी खिलखिला उठे "पिता श्री.. आपकी महिमा निराली है..मुझे पता चल गया कि देवता ही श्रेष्ठ हैं.."
तब ब्रह्माजी गंभीर स्वर में बोले " नारद! देवता इसलिये श्रेष्ठ नहीं है कि उन्होंने यह युक्ति निकाल ली.. परन्तु दैत्य इसलिये अधम हैं क्योंकि दैत्यों ने..देवताओं के एक दूसरे को भोजन कराने को देखकर भी अपने अहंकार के कारण दूसरे दैत्यों को भोजन नहीं कराया जो अच्छा काम होते देख भी उसका अनुसरण न करे.. वह ही दैत्य है"
नारद ने मुस्कुराते हुये ब्रह्माजी को नमन किया और नारायण नारायण कहते हुए वे ब्रह्मलोक से विदा हो गए।
तो बंधुओं आशा करता हूँ नारद की तरह 'जिज्ञासुओं' की जिज्ञासा भी विदा हो गई होगी मैं ज्योतिष विद्या के अपने अल्प ज्ञान से आप सबके प्रारब्ध काट के अपना प्रारब्ध काटना चाहता हूँ और यही मेरे निःशुल्क परामर्श देने का रहस्य है। समय अधिक नहीं है बाकी काली की इच्छा।
काली कल्याणकारी!🙏
#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर
pranaam
ReplyDeletemera janm kundli ek baar dek lijiye guru. 13 august 1994 smay shaam ko 3 bjakar 10 minute hai janm sthan mirzapur uttarpradesh jiska coordinates hai 25N13 82E56
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