Tuesday, December 24, 2019

सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019 सम्पूर्ण जानकारी


सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019
काली कल्याणकारी!
उपाय जानने के इच्छुक सीधे इस लंबे लेख के निचले हिस्से को पढ़ें शेष जिज्ञासु इसे पूरा पढ़ें।
ग्रहण से प्रायः नकारात्मक अर्थ ही लिया जाता है जबकि ग्रहण का अर्थ है धारण करना, किसी की छाया को स्वीकार करना।
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण दोनों ही मानव के लिए सदैव कौतूहल का विषय रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमृत मंथन के समय, अमृत चखने की इच्छा से देवताओं की पंक्ति में जा बैठने तथा वहीं पर पहचान लिए जाने से भगवान विष्णु द्वारा मारे जाने पर, अमृत पी चुकने के कारण, सिर कट जाने पर भी नहीं मरने वाला राक्षस, राहू-केतु ग्रह रूपता को प्राप्त कर गया, परन्तु यह प्रचलित कहानी है सत्य कुछ और है और ऐसा नहीं है कि प्राचीन भारतीय ज्योतिषाचार्य सिद्धान्त गणित और खगोल के ज्ञान से रहित थे।
वास्तव में सूर्य का कल्पित भ्रमणमार्ग दीर्घ वृत्ताकार क्रांतिवृत्त कहलाता है तथा चंद्रमा का भ्रमण मार्ग चंद्र विमण्डल वृत्त कहलाता है। ये दोनों वृत्त न तो समानान्तर हैं और न ही समतलवर्ती अर्थात एक तल में हैं, फिर भी अत्यन्त दूर होने के कारण दोनों वृत्त दो बिंदुओं पर एक दूसरे को काटते प्रतीत होते हैं । ये दो काट बिंदु ही चंद्रमा के पात या राहू-केतु कहलाते हैं। इसी खगोलीय जटिल ज्योतिष ज्ञान पर ऊपर कही गयी सरल कहानी बना दी गई।
जब चंद्रमा सूर्य के सामने आकर बादल की तरह सूर्य के मण्डल को ढक लेता है तब सूर्यग्रहण होता है। ऐसी स्थिति अमावस्या को ही होती है जब सूर्य व चंद्र एक राशि व समान अंशो पर होते हैं परन्तु सूर्यग्रहण के लिए अमावस्या के साथ ही यह भी आवश्यक शर्त है कि चंद्रमा का पात (राहू/केतु) सूर्य के समान अंशो पर हो तथा अमावस्या तिथि अंत के लगभग समय पर हो। यह स्थिति प्रत्येक अमावस्या पर नहीं हो सकती इसी कारण हर अमावस्या पर सूर्यग्रहण हमें देखने को नहीं मिलता है। आचार्य वराहमिहिर ने पाँचवी शताब्दी के अपने ग्रंथ वृहत संहिता में इस वैज्ञानिक मत को कहा है। हजारों वर्षों पूर्व सूर्य सिद्धान्त ग्रंथ में इसका स्पष्ट उल्लेख है और वेदों में उससे भी पूर्व चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण का उल्लेख प्राप्त होता है,अतः यह विदेशी अथवा उधार लिया हुआ ज्ञान नहीं है वरन भारत द्वारा समस्त संसार को ग्रहण कराया गया ज्ञान है।
सूर्यग्रहण के तीन प्रकार होते हैं-
पूर्ण सूर्यग्रहण - जब चंद्रमा पृथ्वी के समीप रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के मध्य आ जाये और सूर्य को पूरा ढक ले।
आंशिक सूर्यग्रहण - जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य इस प्रकार आये कि सूर्य का कुछ भाग पृथ्वी से चंद्रमा द्वारा ढका दिखाई दे।
वलयाकार सूर्यग्रहण- जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के मध्य इस प्रकार आये कि पृथ्वी से देखने पर सूर्य का मध्य भाग चंद्रमा से ढका दिखाई दे। ऐसे में सूर्य के चारों ओर का बाहरी भाग एक विशाल अँगूठी की तरह चमकता हुआ दिखाई देता है।
सूतक- ग्रहण काल के पूर्व ही वातावरण में रज और तम तत्वों की अधिकता होने लगती है और सत तत्वों में क्षीणता होने लगती है अतः इसी कारण प्रायः ग्रहण से पूर्व बारह घंटो का सूतक बताया जाता है और किसी भी प्रकार के शुभ कार्य और जीवन को प्रभावित कर सकने वाले कार्यों का निषेध बताया जाता है क्योंकि रज और तम तत्वों की अधिकता से अनेक सूक्ष्म स्तरीय दुष्प्रभाव हमारे उन कार्यों को विषाक्त कर सकते हैं इसे ही अनिष्ट शक्तियों का नाम दे दिया जाता है। यह दुष्प्रभाव चंद्र ग्रहण की अपेक्षा सूर्य ग्रहण में अधिक होता है क्योंकि सूर्य की किरणें कई तरह के दुष्प्रभावों को समाप्त करती रहतीं है जो कि ग्रहण के दौरान अवरुद्ध होने पर ऐसा नहीं कर पाती हैं। रात्रि के अंधकार की अपेक्षा ग्रहण के दौरान ही इसका अधिक प्रभाव क्यों होता है तो इसका कारण है दिन के समय सूर्य की किरणों का अवरुद्ध होना प्रकृति के सामान्य चक्र में बाधा पहुँचाता है और आप समझ सकते हैं कि किसी भी सामान्य चक्र में आई आकस्मिक बाधा अधिक कष्ट पहुँचाती है।
इसी कारण इस समय सत तत्व की मात्रा बढ़ाने को जप,तप, साधना, दान आदि जैसे कर्म करने को कहा जाता है।
ग्रहण के ठीक बाद सूतक समाप्त हो जाता है इसका कारण है कि ग्रहण उपरांत सूर्य की किरणें अधिक प्रभावी रूप से उन सभी विषैले तत्वों का नाश करने लगतीं हैं जैसे कि अगर आप अपनी कार की बंद खिड़की को जरा सा खोले तो कार के भीतर आने वाली वायु अधिक वेग से आती दिखती है। वास्तव में ग्रहण प्रकृति की स्वच्छता की अनूठी प्रक्रिया है। यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि ऊपर कहे गए दुष्प्रभाव/प्रभाव उस समय के अनुसार गणना किये गए थे जब वातावरण उतना मलिन नहीं था अब तो हम प्रतिदिन ध्वनि, वायु,जल, खाद्य पदार्थों के प्रदूषण और मोटर, मशीनों, मोबाइल आदि यंत्रों के विकिरण से ही इतना अधिक प्रभावित होते रहते हैं कि यह दुष्प्रभाव तुरन्त अपना असर देते नहीं दिखते।
आचार्य वराहमिहिर ने सूर्यग्रहण के प्रभाव-दुष्प्रभाव के लिए एक अत्यंत सरल गणितीय विधि बताई है, इसमें जिस स्थान पर ग्रहण दिखाई दे वहाँ सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के समय (दिनमान) को सात से भाग दे दें और फिर देखें कि समय के इन सात खंडों के मध्य किस खंड में ग्रहण का आरम्भ और किस खंड में ग्रहण का मोक्ष अथवा ग्रहण पूर्ण होता है उसके अनुसार उन्होंने अलग अलग खंडों के अनेक फल कहे हैं। यहाँ अधिक विस्तार देने से लेख अत्यधिक लंबा हो जाएगा।
परन्तु ऊपर दी गई जानकारी अब आपके व्यवहारिक रूप से काम आएगी
इसलिये कल होने वाले सूर्यग्रहण के बारे में कहता हूं- (यह गणना लखनऊ के लिए है अन्य स्थानों पर इसी समय के कुछ आगे पीछे समय रहेगा)
कल 26 दिसम्बर 2019 को सूर्यग्रहण प्रातः 8 बजकर 20 मिनट पर आरम्भ होगा और पूर्वाह्न 11 बजकर 7 मिनट पर पूर्ण होगा।
आंशिक सूर्यग्रहण की पूर्ण अवधि लगभग 2 घंटे 47 मिनट और 20 सेकंड की होगी।
सूतककाल  25 दिसम्बर 2019 रात्रि 8 बजकर 20 मिनट से आरम्भ हो जाएगा (मतांतर से कुछ विद्वान सूर्यास्त के बाद से सूतक का आरम्भ कहते हैं) और 26 दिसम्बर 2019 को पूर्वाह्न 11 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगा।
कल होने वाला सूर्यग्रहण वलयाकार सूर्यग्रहण होगा इसका अधिकतम मैग्नीट्यूड अर्थात परिमाण 0.93- 0.97 होगा जिसका अर्थ है चंद्रमा सूर्य के अधिकतम 93-97 प्रतिशत हिस्से को ही ढकेगा। लखनऊ के लिए यह प्रतिशत 52- 55 होगा। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों जैसे ऊटी शिवगंगा मंगलुरू आदि में वलयाकार सूर्यग्रहण तथा लखनऊ, दिल्ली कलकत्ता मुंबई आदि शेष भारत के शहरों में आंशिक सूर्यग्रहण दिखेगा।
कल सूर्यग्रहण की यह घटना दिनमान के सात भागों में से प्रथम भाग में आरम्भ होगी और तृतीय भाग में सम्पन्न होगी अतः जहाँ जहाँ यह ग्रहण दिखाई देगा वहाँ वहाँ के विद्वानों, ब्राह्मणों, उच्च वर्ग, बड़ी राजनैतिक पार्टियों तथा उनके शिखर पुरुष (नेता), गुणीजनों, धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य करने वालों, अग्नि और यंत्रों से काम करने वालों (स्वर्णकार, लोहार, भोजनालय चलाने वाले, मशीन कम्प्यूटर चलाने वाले) आदि व्यक्तियों को कष्ट व हानि होगी तथा कढ़ाई, दस्तकारी, निचले स्तर पर कार्य करने वाले सभी व्यक्ति, क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टियां तथा उनके नेता, हीन व्यक्ति, दिव्यांग, निम्न वर्ग, व निम्न स्तर के मंत्रियों, अधिकारियों, कर्मचारियों आदि को लाभ होगा।
कल होने वाला यह सूर्यग्रहण धनुराशि में हो रहा है इसके लिए शास्त्र कहता है कि यदि सूर्यग्रहण धनुराशि में हो तो देश के प्रधान पुरुषों, उच्च मंत्रियों, सेना व अस्त्र शस्त्र चलाने वालों और उनके साधनों, वैद्य-चिकित्सकों, बड़े व्यापारियों, तेज तर्रार छवि वालों और मिथिला और गंगाक्षेत्र के निवासियों को कष्ट होता है।
ऊपर कहे गए हानि लाभ पूर्ण ग्रहण के लिए कहे गए हैं अतः आंशिक ग्रहण के लिए अनुपातिक प्रभाव समझें।
वलयाकार ग्रहण दिखने वाले प्रदेशों के नागरिकों का सामान्यतः कुशल होता है हाँ वहाँ पेट व आंतों से जुड़े संक्रामक रोगों के फैलने की संभावना अधिक हो जाती है।
सामान्य उपाय व निर्देश-
क्या न करें- जैसा कि ऊपर बताया गया था कि इस दौरान रज और तम तत्वों की प्रबलता अधिक हो जाती है अतः ऐसे कोई भी कर्म न करें जिससे इन तत्वों की प्रबलता अधिक हो, इस दौरान सामान्य तौर पर भोजन, शयन, मैथुन, शौच तथा शुभ कार्य का आरम्भ आदि न करें।  सूक्ष्म तत्वों के सक्रिय होने के कारण गर्भस्थ शिशु को संक्रमण होने की संभावना रहती है अतः गर्भवती महिलाओं को इस दौरान खुले में विचरण नहीं करना चाहिए। लेकिन उन्हें अपने भोजन,दवाओं आदि का सेवन और शयन समय से करना चाहिए। श्वांस रोगी भी सावधानी बरतें।
क्या करें- सूतक के दौरान अपने जीवन के नित्य कर्म सीमित रखें और अधिक कर्मकांड में न उलझें बस जितना हो सके स्वयं को मानसिक रूप से ईश्वर के समीप रखें। अपने इष्ट के मंत्र का जप करें। गुरु के दिये मंत्र को सिद्ध करें। भोजन आदि सूतक पूर्व ही पका लें तथा ग्रहण कर लें यदि ऐसा संभव न हो तो खाद्य पदार्थों में तुलसी के पत्ते डालकर रखें। परन्तु यह ध्यान रखें कि तुलसी के पत्ते सूतक आरम्भ से पूर्व ही पौधे से प्राप्त कर लें सूतक के दौरान तुलसी के पत्ते न तोड़ें। भोजन सुपाच्य लें क्योंकि ग्रहणकाल में खाद्य पदार्थ और पाचन क्रिया दोनो ही प्रभावित होते हैं हालाँकि आज की अधिकांश आबादी पाचन संबंधी परेशानियों से ग्रस्त है तो इसका भी असर सामान्य रूप से दिखना लगभग असंभव दिखता है परंतु जितना संभव हो सके उतनी सतर्कता अवश्य बरतें।
विशेष उपाय- सभी राशि और लग्न वाले आज  सूतक काल से पहले लाये हुये 400 ग्राम खाण्ड या गुड़ में सूतक काल से पहले तोड़े गये तुलसी के कुछ पत्तों को मिलाकर एक मिट्टी की छोटी किंतु साफ मटकी में भरकर (यदि गेरू से मटकी बाहर से रंग सकें तो और उत्तम) अपने घर के भीतर उत्तर दिशा के किसी स्थान पर सूतक आरम्भ होने से पूर्व किसी भी समय पर रख दें और ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान आदि करने के बाद यथा सामर्थ्य कुछ दक्षिणा के साथ उस मटकी को किसी देव स्थान पर अवश्य ही दे आएं। माँ ने चाहा तो आपके जीवन की कई समस्याओं का हल और आपकी मनोकामनाओं की प्राप्ति का मार्ग आपको आगामी पूर्णिमा तक ही प्राप्त हो जाएगा।
शेष काली इच्छा!
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Monday, November 25, 2019

आज मार्गशीष अमावस्या 2019 पर करें यह उपाय हों ऋण-मुक्त,पाएं समृद्धि,संतान व धन धान्य

काली कल्याणकारी!

आज मार्गशीष अमावस्या पर करें यह उपाय
हों ऋण-मुक्त,पाएं समृद्धि,संतान व धन धान्य

1.जिनका कर्ज़ न उतरता हो वे आज सुबह स्नान आदि के उपरांत गजेंद्रमोक्ष का पाठ करें और शाम को सुन्दरकाण्ड का पाठ करें, भौम अमावस्या होने के कारण आज कर्ज़ मुक्ति का विशेष दिन है।

2.संतान की इच्छा रखने वाले पति-पत्नी सुबह और शाम संतान गोपाल और विष्णुसहस्त्रनाम दोनों का पाठ करें।

3. धन की कमी और दरिद्रता से जूझ रहे व्यक्ति आज सुबह विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें और शाम को माँ लक्ष्मी की पूजा करें।

4. जिनके हर काम में बाधा पड़ जाती हो, बना बनाया काम आखिरी वक्त में बिगड़ जाता हो, किसी नए काम में विघ्न आता हो और जीवन में बहुत संघर्ष के उपरांत भी सफलता न मिलती हो या बहुत देर से मिलती हो ऐसे सभी व्यक्तियों को सुबह शिव परिवार की पूजा और दोपहर 12 बजे जल में थोड़े से तिल डालकर पितरों को तर्पण देना चाहिए तथा शाम को गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

5. आज के दिन तुलसी के पौधे की थोड़ी सी मिट्टी और तुलसी की कुछ पत्तियां जल में मिलाकर स्नान करना चाहिए, और उपवास रखना चाहिए। ऊपर बताए गए उपायों में सुबह का मतलब सूर्योदय के एक घंटे के भीतर और शाम का मतलब सूर्यास्त के एक घंटे के अंदर के समय से लें।

शेष काली इच्छा!
#ज्योतिषडॉक्टर #आचार्यतुषारापात
#jyotishdoctor #acharyatusharapaat 

Friday, November 8, 2019

देवउठनी एकादशी विशेष वैज्ञानिक सूत्र

काली कल्याणकारी!
जीवन में आया प्रतिकूल समय हमें उतना कष्ट नहीं पहुँचाता जितना कि विपरीत समय आने की आशंका कष्ट पहुँचाती रहती है। विपदा में पड़ जाने का भय हमें अधिक भयभीत करता है जबकि विपदा में पड़ने पर हम क्षण भर को तो भयभीत होते हैं परंतु शीघ्र ही हम उस विपदा के प्रति संघर्ष आरम्भ कर देते हैं यह एक स्वचालित प्राकृतिक प्रक्रिया है कई बार हमें स्वयं भी पता नहीं होता कि हम ऐसा कुछ कर रहे हैं क्योंकि हमारे मस्तिष्क का एक हिस्सा अभी भी एक आशंका से भरा होता है कि क्या हम इस विपदा से पार पा पायेंगें, इस आशंका के कारण ही हम यह नहीं देख पाते कि हमारे  मस्तिष्क का एक बड़ा भाग और हमारा ये शरीर पूरी दृढ़ता से उस विपदा से निकलने के प्रयास में लगा है। जिस दिवस तुम्हारे भीतर यह आशंका सुप्त हो जाएगी और तुम्हें अपने मस्तिष्क और शरीर की प्रकृति प्रदत्त इस दृढ़ता और जिजीविषा का भान हो जायेगा तुम्हारे भीतर का नारायण जाग जाएगा और तुम स्वयं को ग्यारह गुना अधिक शक्तिशाली पाओगे। कहते भी हैं कि एक और एक ग्यारह होते हैं, तो तुम नारायण से एक हो जाओ, अपने भीतर के नारायण को जगाओ,आज दिन है नारायण के जागने का उसे किसी मंदिर में जगाने से पहले इस पंचमहली शरीर में, अपने मन के अंदर जगाओ और स्वयं मंदिर हो जाओ, मंदिर छोड़ के नारायण कहाँ जायेंगें,तुममें ही रह जायेंगें।

#हरिप्रबोधिनी_एकादशी
#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर

ज्योतिषी से पूछे जाने वाले प्रश्न का महत्त्व

प्रश्न का महत्त्व क्या है यह जानने के लिए यह कथा सुनो-
एक जुआरी दोपहर में एक महात्मा के पास गया और उनसे कहने लगा "महाराज जी..मैं आज सुबह अपने दोस्तों के साथ पत्ते खेल रहा था...मैं जीत तो नहीं रहा था..पर ज़्यादा हारा भी नहीं था..जुआ बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन थोड़ी देर के बाद ही शराब पीने का दूसरा दौर चला और मेरे साथ पत्ते खेलने वालों ने मुझे बहुत मारा-पीटा और सारे पैसे छीन लिए.. मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे आगे कभी भी मेरे साथ ऐसा कुछ न हो"

"भाई.. अगली बार जब जुआ खेलने जाना तो अपने साथ अपने दो चार हट्टे-कट्टे दोस्त ले जाना" महात्मा ने उसे यह उत्तर दिया जिसे सुनकर जुआरी खुशी खुशी चला गया, परन्तु महात्मा की यह बात सुनकर उनका शिष्य थोड़ा दुखी होकर बोला "लेकिन गुरुदेव.. आप उससे यह भी तो कह सकते थे कि जुआ खेलना बुरी बात है..अगर वो जुआ खेलने नहीं जाता तो न शराब पीता..और न ही मारा-पीटा जाता।

महात्मा मुस्कुराए और बोले "तुम्हें क्या लगता है वह यह बात नहीं जानता कि जुआ खेलना और शराब पीना बुरी बात है.. वो बस ये जानने आया था कि कैसे वो अगली बार पीटे जाने से बचे और उसके पैसे न छीने जाएं.. उसे उसके मन का उत्तर चाहिए था न कि मेरा ज्ञान और अपना उत्थान।"

#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर

तुम्हारा चेहरा राजदरबार है

काली कल्याणकारी!
कान,आँख और नाक, मस्तिष्क के सर्वश्रेष्ठ मंत्री हैं,इनके परामर्शानुसार जिह्वा की तुला का संतुलन करने वाले का मुख राजदरबार सा सुशोभित होता है। 

#ज्योतिषडॉक्टर #आचार्यतुषारापात

निःशुल्क ज्योतिष परामर्श ज्योतिष डॉक्टर आचार्य तुषारापात द्वारा

निःशुल्क परामर्श को लेकर कुछ लोगों को बड़ी चिंता सता रही है कुछ को शक है कि यह पैसे ऐंठने का कोई दाँव है और कुछ सोच रहे हैं कि कहीं न कहीं इसमें कुछ तो रहस्य है तो ऐसे सभी 'जिज्ञासुओं' हेतु यह कहानी सुनाता हूँ जो बचपन में आप सबने अवश्य सुनी होगी-----

"नारायण..नारायण!" देवऋषि नारद अपने चिरपरिचित अंदाज़ में नारायण नाम का जप करते हुए ब्रह्मलोक पहुँचते हैं उन्हें आया देख ब्रह्मा जी मुस्कुराए और बोले "आओ नारद आओ...आज ब्रह्मलोक में भ्रमण का उद्देश्य कहो"

"जगतपिता..आप अंतरयामी हैं..सब आपकी ही विधि है विधाता.. कुछ दिवसों से मेरे मन में एक प्रश्न ने घर बना लिया है उसी प्रश्न के उत्तर हेतु आपके समक्ष उपस्थित हूँ" नारद ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा

ब्रह्मा जी बोले "निसंकोच पूछो पुत्र" देवऋषि नारद ने उनके सामने अपना प्रश्न रखा "देवता और दैत्य सभी आपकी ही रचना हैं..मुझमें यह जिज्ञासा भी आपकी ही किसी माया के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है.. हे पिता! आपके इन दोनों पुत्रों में श्रेष्ठ कौन है.. एक ओर देवता यदि श्रेष्ठ भक्त और सदाचारी हैं तो दूसरी ओर दैत्य शक्ति और हठयोग में श्रेष्ठ हैं परंतु आपके अनुसार दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं?"

यह तो बड़ा कठिन प्रश्न प्रस्तुत किया तुमने पुत्र.. परन्तु इसका उत्तर तो देना ही होगा.. ऐसा करो पुत्र..तुम देवलोक और दैत्यलोक में सबको कल दोपहर के भोजन का मेरा निमंत्रण दे आओ.. कल जब समस्त देव-दानव यहाँ ब्रह्मलोक में भोजन हेतु उपस्थित होंगे तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाएगा" ब्रह्मा जी नारद से यह कहकर ध्यानस्थ हो गए

नारद शीघ्रता से देवलोक और दानवलोक में जगतपिता का निमंत्रण देने निकल जाते हैं और अगले दिन ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के आदेश पर उपस्थित सभी देव-दैत्यों को देख बड़े प्रसन्न होते हैं कि चलो अब मेरे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा कि देवताओं और दैत्यों में कौन श्रेष्ठ हैं।

ब्रह्माजी के आदेश पर एक तरफ दैत्यों को आमने सामने दो पंक्तियों में बिठाया गया और दूसरी ओर इसी तरह देवताओं को बिठा के सुन्दर स्वादिष्ट और सिर्फ ब्रह्मलोक में मिलने वाले अनोखे पकवानों से सजे थाल हर किसी के सामने रख दिये गए, सब भोजन आरंभ करने जा ही रहे थे कि तभी ब्रह्माजी ने कहा "रुको तुम सबको भोजन करना तो है परंतु एक विशेष परिस्थिति में" ऐसा कहकर ब्रह्माजी ने एक एक हाथ लंबी लकड़ियों के कई सारे टुकड़े मंगवाए और सभी देवताओं और दानवों के दोनों हाथों में उन लकड़ियों के टुकड़े इस प्रकार बँधवा दिए जिससे कि कोई भी अपने हाथों की कोहनियाँ न मोड़ पाए, ऐसा करवाने के बाद उन्होंने सबसे कहा "पुत्रों.. अब आप सब भोजन का आनंद लें"

ब्रह्माजी के इस अनोखे आदेश के कारण दैत्यों और देवों को भोजन करना असम्भव हो गया था, दैत्यों ने अनेक प्रयत्न किए पर वो किसी भी तरह किसी भी पकवान का एक छोटा सा टुकड़ा भी अपने मुख तक न ले जा पाए, अंत में थक-हारकर दैत्य कुपित होकर बैठ गए।

देवताओं ने भी अनेक विधि संघर्ष किया पर शीघ्र ही वे समझ गए कि इस तरह बिना हाथ मोड़े स्वयं को भोजन करा पाना असंभव है अतः उन्होंने एक युक्ति निकाली और अपने सामने बैठे देवों के समीप जाकर उनके भोजन-थाल से उन्हें पकवान खिलाने लगे और ऐसा ही उनके सामने वाले देवों ने किया और इस प्रकार सभी देवताओं ने भोजन का आनंद उठाया और दैत्य उन्हें भोजन करते देखते रह गये।

ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए नारद से पूछा " क्यों पुत्र..तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हुआ?"

देवऋषि नारद भी खिलखिला उठे "पिता श्री.. आपकी महिमा निराली है..मुझे पता चल गया कि देवता ही श्रेष्ठ हैं.."

तब ब्रह्माजी गंभीर स्वर में बोले " नारद! देवता इसलिये श्रेष्ठ नहीं है कि उन्होंने यह युक्ति निकाल ली.. परन्तु दैत्य इसलिये अधम हैं क्योंकि दैत्यों ने..देवताओं के एक दूसरे को भोजन कराने को देखकर भी अपने अहंकार के कारण दूसरे दैत्यों को भोजन नहीं कराया जो अच्छा काम होते देख भी उसका अनुसरण न करे.. वह ही दैत्य है"

नारद ने मुस्कुराते हुये ब्रह्माजी को नमन किया और नारायण नारायण कहते हुए वे ब्रह्मलोक से विदा हो गए।

तो बंधुओं आशा करता हूँ नारद की तरह 'जिज्ञासुओं' की जिज्ञासा भी विदा हो गई होगी मैं ज्योतिष विद्या के अपने अल्प ज्ञान से आप सबके प्रारब्ध काट के अपना प्रारब्ध काटना चाहता हूँ और यही मेरे निःशुल्क परामर्श देने का रहस्य है। समय अधिक नहीं है बाकी काली की इच्छा।

काली कल्याणकारी!🙏
#आचार्यतुषारापात #ज्योतिषडॉक्टर

Thursday, October 24, 2019

धनतेरस 2019 पर करें ये सरल उपाय,बने निरोगी पाएं धन-धान्य! धनतेरस पर अपनी अपनी राशि अनुसार करें सिर्फ यह एक उपाय,पाएं सौभाग्य!


आपको आम के पेड़ का एक स्वस्थ और बड़ा पत्ता लेकर उस आम के पत्ते को पानी से धोकर सुखा लेना है। जब पत्ता सूख जाए तो उसे किसी नुकीली चीज से हल्का हल्का गोदना है (हल्के हाथों से करें पत्ते के आरपार छेद न बने ये ध्यान रखें), फिर इसके बाद इस पत्ते को गाय के दूध में करीब आधे घण्टे के लिए भिगो के रख दें। अब अपनी अपनी राशि अनुसार ये काम करें-

1. मेष राशि वाले व्यक्ति दूध से निकाले पत्ते के बीचोबीच कत्थे की छाल रखें फिर एक ऐसा शुद्ध चाँदी का सिक्का रखें जिसे बाद में पहना जा सके( बच्चों को पहनाया जाने वाला चंद्रमा जैसा होता है)। सिक्का रखने के बाद उसके ऊपर कत्थे की छाल ऐसे रखें कि सिक्का पूरा ढक जाए इसके बाद आम के पत्ते को मोड़कर सिक्के को पूरा ऐसे बाँध दें जैसे पान पत्ते में बाँधा जाता है इसके लिए आप किसी धागे का प्रयोग करें तो बेहतर रहेगा उसके बाद एक मिट्टी के कुल्हड़ में गाय का घी इतना भरें जिसमें यह आम के पत्ते में बँधा चाँदी का सिक्का पूरा डूब जाए। घी से भरे कुल्हड़ में बनायी हुयी यह पत्ते की पुड़िया डुबोने के बाद कुल्हड़ के मुँह को एक बड़े मिट्टी के दीपक से ढक दें और उस दीपक  में गाय के घी से एक गोलबाती को धनतेरस की शाम अपने शहर के ठीक सूर्यास्त के समय जलाएं यदि यह दीपक आप भैया दूज की सुबह तक लगातार जलाए रख सकते हैं तो सर्वोत्तम अगर यह सम्भव न हो तो धनतेरस की शाम जलाने के बाद अगले चार दिनों के सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अवश्य प्रज्ज्वलित करें। इस सारी प्रक्रिया का  आरम्भ धनतेरस पर अपने शहर के सूर्यास्त से करीबन एक घंटे पहले से आपको करना है  और दीपक का प्रज्ज्वलन ठीक सूर्यास्त के समय करना है।

भैया दूज पर सूर्योदय के एक घंटे के भीतर इस आम की पुड़िया से चाँदी के सिक्के को निकाल लें और किसी भी रंग के धागे में पहन लें।

गाय के बचे दूध को और निकले हुए आम के पत्ते को घर के किसी गमले में दबा दें और कुल्हड़ के घी को अपनी रोजमर्रा के पूजन के दीपक में प्रयोग कर डालें।

चाँदी का सिक्का, बताई गई जड़ अथवा छाल, मिट्टी का कुल्हड़ और दीपक आदि की खरीदारी धनतेरस पर अपने शहर के ठीक मध्याह्न समय पर करें यदि यह सम्भव न हो तो जितना संभव हो इसके आसपास का समय चुने।


2. अन्य सभी राशियों के व्यक्तियों को ऊपर बताई गई यह पूरी विधि करनी है बस कत्थे की छाल की जगह प्रत्येक राशि के व्यक्ति इन   चीजों का प्रयोग करें-

3. वृषभ राशि के व्यक्ति ऊपर बताई गई विधि में कत्थे की छाल की जगह कपास की छाल या जड़ का प्रयोग करें, मिथुन राशि वाले केले के तने की छाल का, कर्क राशि वाले पलाश की छाल/जड़ का, सिंह राशि वाले मदार की जड़/छाल का, कन्या राशि वाले दूर्वा घास का, तुला राशि वाले गूलर की छाल का, वृश्चिक राशि वाले ढाक की छाल का, धनु राशि वाले केले की जड़ का, मकर राशि वाले शमी की जड़ का, कुंभ राशि वाले खजूर की गुठली का चूर्ण, और मीन राशि वाले पीपल की छाल या जड़ को ऊपर बताए गयी विधि (पॉइंट 1) के अनुसार प्रयोग करें।

काली कल्याणकारी!
#ज्योतिषडॉक्टर #आचार्यतुषारापात




Saturday, October 19, 2019

उठना और जागना


सुप्रभात!
अच्छा अगर पूछा जाए कि क्या तुम उठ गए? या तुम जाग गए? तो क्या दोनों में कुछ अंतर है या दोनों एक ही बात है? चलो छोड़ो ये दोनों टेढ़े प्रश्न और इस सीधे से सवाल का जवाब दो-
अगर मैं तुमसे पूछूँ कि तुम्हारे सुबह उठने की वजह क्या है,तो क्या जवाब होगा तुम्हारा?
कोई कहेगा कि उसे दूध लेने जाना होता है तो कोई कहेगा कि उसे सुबह उठकर पूजा अर्चना करनी होती है, कोई कहेगा उसे नित्य क्रिया के अत्यधिक दबाव के कारण उठना पड़ता है तो कोई कहेगा कि उसे हल्की सी भूख लगने पर नींद खुलती है, कोई चाय की तलब से उठता है और एक बहुत बड़ी आबादी उठती है अपने काम पर या कार्यालय या विद्यालय आदि पर सही समय पर पहुँचने के दबाव के कारण या फिर उस काम पर जाने वाले व्यक्ति के नहाने, नाश्ते, आदि की व्यवस्था करने वाले दूसरे व्यक्ति उस व्यक्ति के डेली रूटीन के दबाव में सुबह उठते हैं।
पर तुम अपने लिए कब जागे? तुम जागते हो अगर तुम उस काम के लिए उठते हो जिसमें तुम्हारी रुचि है या तुम्हें वो काम करना पसंद है । तुम उस काम के लिए जागते हो जिसमें तुम्हें महारत हासिल है या फिर तुम जागते हो दुनिया के लिए अर्थात तुम ऐसा कोई काम करने के लिए रोज अपना बिस्तर छोड़ देते हो जिससे संसार के अन्य लोगों को लाभ होगा और तुम जागते हो यदि तुम उस काम के लिए सुबह उठते हो जिससे तुम पैसा, प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करते हो।
यदि ऊपर बताई चारों बातें एक साथ तुम्हारे सुबह जागने की वजह है तो मेरे मित्र तुम्हें कोई ज्योतिषी, डॉक्टर , मनोवैज्ञानिक, मोटिवेशनल स्पीकर, गुरु आदि की आवश्यकता नहीं पर अगर ऊपर बताई चारों बातें एक साथ नहीं लागू होतीं तो तुम ठीक पेज पर हो क्योंकि कुंडली में कर्म भाव और सुख भाव एक दूसरे के ठीक सामने होते हैं और इनका सामंजस्य कैसे बिठाना है ये तुम आगे जानोगे , तब तक ऊपर बताई बातों का चिंतन करो और क्या तुम स्वयं लागू कर पा रहे हो और क्या तुमसे नहीं हो पा रहा, अभ्यास के बाद उसे नोट करना शुरू कर दो जिससे पूछते समय तुम्हें उचित मार्गदर्शन मिल सके।
काली कल्याणकारी!🙏
#ज्योतिषडॉक्टर #आचार्यतुषारापात

Monday, October 14, 2019

परीक्षा या चुनाव

विद्या और ज्ञान

एक कहानी सुनाता हूँ सुनो

एक एकाउंटेंट जिसका नाम था विराट, अपनी पत्नी और पुत्री के साथ प्रयाग में रहता था। उसे समय समय पर अपनी पत्नी और अपनी छह वर्षीय बेटी की बुद्धि की परीक्षा लेने का बड़ा शौक था।

एक बार गर्मी की छुट्टियों में उसकी पत्नी की दोनों बहनें अपनी एक एक बेटी के साथ कुछ दिनों के लिए उसके घर आईं। उसकी एक साली ग़ाज़ियाबाद से थी और दूसरी चंडीगढ़ से। उन दोनों बहनों की दोनों बेटियाँ भी विराट की बेटी की उम्र के आसपास की हीं थीं।

एक दिन उसने तीनों बच्चियों की परीक्षा लेने का सोचा। उसने चॉकलेट के तीन पैकेट लेकर किचेन के सबसे ऊपर के कैबिनेट पे रख दिये जहाँ तक पहुँचने के लिए उसकी पत्नी को भी स्टूल लगाना पड़ता था तो छोटी बच्चियों के पहुँचने का कोई सवाल ही न था।

चॉकलेट ऊपर रखने के बाद उसने तीनों बच्चियों से कहा कि अब तीनों को इन पैकेटों में से अपने लिए एक एक पैकेट उठाना है लेकिन इसके लिए उन्हें न कोई  स्टूल या सीढ़ी वगैरह लगानी है और न ही उन्हें सीधे सीधे अपनी माँओं या उससे यानी विराट से चॉकलेट उठाने को कहना है।

चंडीगढ़ से आई बच्ची बहुत जोश में किचेन में इधर उधर दौड़ के चढ़ने की जगह ढूंढने लगती है पर थोड़ी बहुत कोशिशों के बाद थक जाती है और रूठ के जाते जाते कह जाती है "मौसा जी को अगर चॉकलेट खिलानी थी तो सीधे सीधे दे देते, ये क्या कि इधर से चढ़ो उधर से चढ़ो।"

विराट की खुद की बेटी कुछ भी प्रयास नहीं करती है और चुपचाप जाकर किचेन से लगी डाइनिंग टेबल की उस कुर्सी पर जाकर बैठ जाती है जहाँ से किचेन उसे दिखता रहे।

ग़ाज़ियाबाद से आई बच्ची अपनी एक कजिन को कोशिश करके हार के जाते देखती है और दूसरी कजिन को बिना कुछ किये चुपचाप बैठे देखती है वो थोड़ी देर कुछ सोचती है और फिर विराट से कहती है "मौसाजी क्या आप मुझे अपने शोल्डर्स पर बिठा लेंगें" विराट उसकी बात सुनके बहुत खुश होता है और उसे अपने कंधों पर बिठा लेता है और वो बच्ची खुशी खुशी चॉकलेट का एक पूरा पैकेट उठा लेती है, विराट उसे शाबासी देता है और बचे हुए चॉकलेट के दोनों पैकेट थोड़ी देर बाद दोनों बच्चियों को दे देगा यह सोचकर वहाँ से चला जाता है।

विराट की बेटी सबकुछ देख रही होती है जब विराट वहाँ से चला जाता है तो वो ग़ाज़ियाबाद की अपनी कजिन सिस्टर के पास आती है और उसकी बहुत तारीफ करती है और तारीफ करते करते उसे अपनी खास कजिन बताते हुये, प्यार भरी बातों के बीच उसकी आधी चॉकलेट शेयर कर लेती है।

थोड़ी देर को यदि तुम विराट को ईश्वर मान लो तो इस कहानी से यह सीख ले सकते हो कि ईश्वर से किसी वस्तु, पद आदि सीधे सीधे माँगने की जगह उस वस्तु, पद प्रतिष्ठा आदि की प्राप्ति का साधन माँगों कहो उससे कि मैं परिश्रम को तैयार हूँ मुझे मेरी इच्छा प्राप्ति का मार्ग दिखा। और साथ ही इस कहानी की ही तरह इस संसार में भी तीन तरह के लोग हैं तुम कौन से होना चाहते हो इसका भी चुनाव कर लो।

काली कल्याणकारी!🙏
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Sunday, October 13, 2019

शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने के नियम

आप सभी को शरद पूर्णिमा, वाल्मीकि जयंती और मीराबाई जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!

शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर बना के चाँदनी में रखने की परंपरा है।

शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने के नियम-
खीर बनाने के लिए ध्यान रखें कि चाँदी के बर्तन में गाय के दूध से ही खीर बनायें, गाय के दूध में थोड़ा सा गंगाजल मिलाएं फिर उसमें चावल मिला के पकाएं फिर उसमें थोड़ी सी इलायची मिलाएं। अन्य कोई मेवा केसर तथा चीनी इत्यादि इस खीर में न डालें दूध में चीनी पहले से होती है आप जब दूध पकाते हैं तो दूध में पानी की मात्रा कम होने से यह स्वतः मीठा हो जाता है। चाँदी का बर्तन न होने पर मिट्टी का बर्तन प्रयोग करें और उसमें यदि संभव हो तो चाँदी का एक चम्मच डाल दें। अन्य किसी धातु के बर्तन में खीर बनाने से उतना लाभ नहीं होता।

यह खीर अगर चाँद की रोशनी में ही बनाई जाए और बनने के बाद चाँदनी में रख दी जाए तो औषधि हो जाती है। गाय के दूध में कई बीमारियों को दूर करने वाले तत्व होते हैं जो चंद्रमा की किरणों से एक्टिव हो जाते हैं और चंद्रमा की किरणों को अवशोषित कर लेते हैं, चाँदी की रोग प्रतिरोधकता का गुण इस मिश्रण में उतर आता है गंगाजल इस मिश्रण को जमने नहीं देता है और चावल में मौजूद स्टार्च इन सभी तत्वों को लॉक करता है इलायची स्वाद और सुगंध देने के साथ साथ दूध के भारीपन को दूर कर इसे सम्पूर्ण औषधि बना देती है।

चाँदनी में रखी गई यह खीर सूर्योदय से पहले ही अपने इष्टदेव को भोग लगा कर प्रसाद रूप में ग्रहण करनी चाहिए तभी इसके पूर्ण औषधि तत्वों (पुण्य) का लाभ प्राप्त होता है। इस खीर को खाने के तुरंत बाद सोना वर्जित है अच्छा होगा कि आप इसे खा के हल्की फुल्की वॉक पर निकल जाएं।

काली कल्याणकारी!🙏
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Friday, October 11, 2019

किसी ज्योतिषी से प्रश्न कैसे पूछें? क्यों नहीं पूरी होती कहीं माँगी गई दुआ या प्रार्थना? अपनी प्रार्थना या प्रश्न पूछने का क्या है सही तरीका? प्रार्थना, अर्जी लगाने और ज्योतिष विद्वान से प्रश्न पूछने के पाँच 5 नियम।

किसी ज्योतिषी से प्रश्न कैसे पूछें? क्यों नहीं पूरी होती कहीं माँगी गई दुआ या प्रार्थना? अपनी प्रार्थना या प्रश्न पूछने का क्या है सही तरीका? प्रार्थना, अर्जी लगाने और ज्योतिष विद्वान से प्रश्न पूछने के पाँच 5 नियम। आचार्य जी ने एक बहुत ही सरल और संक्षिप्त विधि बताई है जिसका प्रयोग करने से आपको अपने प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर प्राप्त होंगे। यह विधि आप कहीं भी किसी से भी कोई भी प्रश्न पूछने से पहले या कहीं देव स्थान, मंदिर आदि में अपनी प्रार्थना से पहले भी आजमायेगें तो चमत्कारी लाभ आपको मिल सकता है। 'ज्योतिष डॉक्टर'
निःशुल्क ज्योतिष परामर्श केंद्र आचार्य तुषारापात राम राम बैंक चौराहा अलीगंज लखनऊ जब कभी भी आपको किसी ज्योतिषी, विद्वान, प्रोफेसर या भगवान से कोई प्रार्थना या प्रश्न करना हो तो इन नियमों का पालन कीजिये- 1. एक बार में एक ही प्रश्न अपनी सरल भाषा में कम शब्दों में करें, अधिक के लालच से बचें, यदि सिद्ध विद्वान है या सिद्ध स्थान है तो एक प्रश्न या प्रार्थना से ही कल्याण हो जाएगा। 2. सबसे पहले अपने सबसे आवश्यक प्रश्न या प्रार्थना को निश्चित करें और फिर अपनी प्रार्थना या प्रश्न को पूछने से काफी पहले से मन ही मन उसे कई बार दोहरा लें जिससे आपको उसका फ्लो और वाक्य विन्यास समझ आ जाये कि कहीं शब्दों के अर्थ से कोई दूसरा अर्थ तो नहीं निकल रहा। आप जब मन में कई बार इसे दोहराएंगे तो आपको समझ आ जायेगा कि जो आप पूछना चाहते हैं उसके लिए यह शब्द और वाक्य ठीक है, भाव वही है जो आप जानना चाह रहे हैं। 3. यदि प्रश्न लिख के पूछना हो तो प्रश्न को कई बार लिख के संतुष्ट हों जाएं। 4. अब ध्यान से पढ़िए, प्रश्न चाहे पूछना हो या चाहे मेल, व्हाट्सएप आदि के द्वारा लिख के उत्तर जानना हो तो पूछने या लिखने से ठीक पहले 5 बार गहरी गहरी साँस लें और धीरे धीरे साँस बाहर छोड़ें तथा इस दौरान अपना मन उसी प्रश्न पर स्थिर कर दें। 5. पाँच गहरी साँस लेने के बाद अपना प्रश्न पूछना छठी साँस भीतर खींचते हुए आरंभ करें और ध्यान रखें कि जब आपका प्रश्न पूर्ण हो रहा हो तब आप एकदम से अपनी साँस बाहर न छोड़ दें वरन साँस को थोड़ी देर रोक कर प्रश्न पूछने के कुछ पलों बाद धीरे धीरे छोड़ के उत्तर की प्रतीक्षा करें। प्रश्न अगर लंबा है तो प्रश्न समाप्त होने से पहले दूसरी साँस भर लें पर किसी भी अवस्था में आपकी साँस प्रश्न समाप्त होने के समय पूरी बाहर नहीं छूटनी चाहिए। साँस पूरी छोड़ के प्रश्न करना अच्छा फल नहीं देता। यही प्रक्रिया प्रश्न लिख के पूछने में भी करें। आशा है आप इसे अपने जीवन में उतारेंगे और अन्य लोगों से यह विधि शेयर भी करेंगें।
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सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019 सम्पूर्ण जानकारी

सूर्यग्रहण 26 दिसम्बर 2019 काली कल्याणकारी! उपाय जानने के इच्छुक सीधे इस लंबे लेख के निचले हिस्से को पढ़ें शेष जिज्ञासु इसे पूरा पढ़ें। ...