जो प्रतिदिन अपनी सहस्त्र भुजाओं से इस धरती को अपने अंक में धारण करते हैं, जिनकी कोटि किरणें रक्तवाहिनी नलिकाओं के समान पृथ्वी रूपी हृदय को स्पंदित रखतीं हैं, सौरमंडल रूपी शरीर के अन्य अंग अर्थात अन्य ग्रह जिनकी परिक्रमा करते हैं और जो मस्तक रूपी इस सौरमंडल के सिरमौर हैं, जिनसे समस्त जनों का निष्पक्ष रूप से कल्याण करने वाला परम गूढ़ यह ज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, संसार को प्राप्त हुआ, परमप्रतापी, अविनाशी तेजधारी, सौरमंडल के सृजक, पालक और संहारक प्रथम पूज्य सूर्य भगवान को, मृत्युलोक की मरुभूमि की मरीचिका सम मैं आचार्य तुषारापात अपना प्रथम प्रणाम अर्पित करता हूँ।
~ज्योतिषडॉक्टर (आचार्य तुषारापात)
सादर प्रणाम गुरु जी
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