जिनके दुग्ध से सिंचित यह रक्त-हाड़-माँस का शरीर एक स्वस्थ मस्तिष्क धारक हुआ, जिन्होंने जीवन में सर्वप्रथम मुझे लेखनी पकड़ाई, जिन्होंने अपने जीवन में अनगिनत कष्ट उठाते हुए भी मुझे अंकगणित, बीजगणित और आदिभाषा संस्कृत का प्रारंभिक ज्ञान कराया, जिनके आशीर्वाद से यह रक्त-हाड़-माँस-मस्तिष्क 'तुषारापात' बना , करुणा की मूरत मेरी प्रथम शिक्षिका गुरु मेरी माँ श्रीमती कामिनी सिंह के श्री चरणों में मैं उनका पुत्र तुषार सिंह अपना शीष नवाता हूँ।
#ज्योतिषडॉक्टर
#आचार्यतुषारापात
पूज्य माता जी और गुरु जी को 🙏🙏
ReplyDeleteमृत्युंजय पांडेय